Saturday, 15 June 2019

मेरी बिटिया के पापा


कल रात को अचानक नींद खुल गयी, बेड पर तुम्हें न पाकर मिचमिचाते आँखों से सिरहाने रखा फोन टटोलने पर टाईम देखा तो 1:45 a.m हो रहे थे।बेडरूम के भिड़काये दरवाजों और परदों के नीचे से मद्धिम रोशनी आ रही थी , शायद तुम ड्राईंंग रूम में हो, आश्चर्य और चिंता के मिले जुले भाव ने मेरी नींद उड़ा दी। जाकर देखा तो तुम सिर झुकाये एक कॉपी में कुछ लिख रहे थे।इतनी तन्मयता से कि मेरी आहट भी न सुनी।
ओह्ह्ह....,ये तो बिटिया की इंगलिश  लिट्रेचर की कॉपी है! तुम उसमें कुछ करैक्शन कर रहे थे।कल उसने एक निबंध लिखा था बिना किसी की सहायता के और तुमसे पढ़ने को कहा था , तब तुमने उससे वादा किया था आज जरूर पढ़ोगे, पर तुम्हारी व्यस्त दिनचर्या की वजह से आज भी तुम लेट ही आये और निबंध नहीं देख पाये थे। मैंने धीरे से तुम्हारा कंधा छुआ तो तुमने चौंक कर देखा और शांत , हौले से  मुस्कुराते हुये कहा कि ' उसने इतनी मेहनत से खुद से कुछ लिखा है अगर कल पर टाल देता तो वो निराश हो जाती न।'
ऐसी एक नहीं अनगिनत घटनाएँ और छोटी-छोटी बातें है बिटिया के लिए तुम्हारा असीम प्यार अपने दायित्व के साथ क़दमताल करता हुआ दिनोंंदिन बढ़ता ही जा रहा है। उसके जन्म के बाद से ही एक पिता के रूप में  तुमने हर बार विस्मित किया है।
मुझे अच्छी तरह याद है बिटिया के जन्म के बाद पहली बार जब तुमने उसे छुआ था तुम्हारी आँखें भींग गयी थी आनंदविभोर उसकी उंगली थामें तुम तब तक बैठे रहे जब तक अस्पताल के सुरक्षा कर्मियों ने आकर मरीजों से मिलने का समय समाप्त हो गया  कहकर जाने को नहीं कहा। उसकी एक छींक पर मुझे लाखों हिदायतें देना,उसकी तबियत खराब होने पर रात भर मेरे साथ जागना बिना नींद की परवाह किये जबकि मैं जानती हूँ 5-6  घंटों से ज्यादा सोने के लिए कभी तुम्हारे पास वक्त नहीं होता। उसके पहले जन्मदिन से ही भविष्य के सपनों को पूरा करने के लिए न जाने क्या-क्या योजनाएँँ बनाते रहे। बिटिया भी तो... उसकी कोई बात बिना पापा को बताये पूरी कब होती है! जितना भी थके हुए रहो तुम पर जब तक दिन भर की सारी बातें न कह ले तुम्हें दुलार न ले सोती ही नहीं, तुम्हारे इंतज़ार में छत से अनगिनत बार तुम्हारी गाड़ी झाँक आती है। 'मम्मा पा फोन किये थे क्या उनको लेट होगा? अब तक आये क्यों नहीं..? तुम्हारे आने के समय में देर हो तो अपना फेवरेट टी.वी. शो भूलकर सौ बार सवाल करती रहती है।'
जब तुम दोनों मिलकर मेरी हँसी उड़ाते मुझे चिढ़ाते हो,खिलखिलाते हो... भले ही मैं चिड़चिडाऊँ पर मन को मिलता असीम आनंद शब्दों में बता पाना मुश्किल है।

तुम दोनों का ये प्यार देखकर मेरे पापा के प्रति मेरा प्यार और गहरा हो जाता है, जो भावनाएँ मैं नहीं समझ पाती थी उनकी, अब सारी बातें समझने लगी हूँ उन सारे पलों को फिर से जीने लगी हूँ।
पापा को कभी नहीं बता पायी मैं उनके प्रति मेरी भावनाएँ, पर आज सोच रही हूँ कि इस बार उनसे जाकर जरूर कहूँगी कि उनको मैं बहुत प्यार करती हूँ।

तुम्हें अनेको धन्यवाद देना था ,नहीं तुम्हारी बेटी के प्रति तुम्हारे प्यार के लिए नहीं बल्कि मेरे मेरे पापा के अनकहे शब्दों को उनकी अव्यक्त भावनाओं को तुम्हारे द्वारा समझ पाने के लिए।

  #श्वेता सिन्हा

Friday, 14 June 2019

भूटान यात्रा-2

जयगाँव स्थित भूटान-प्रवेश द्वार
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हम जिस गाड़ी में सवार हुये उसमें हम तीन लोग यानि मैं,मेरी बिटिया और उसके पापा के साथ एक सरदार अंकल-आंटी,एक बंगाली अंकल-आंटी थे।
ड्रॉइवर मिलाकर कुल 8 लोग।
सबके साथ उनसे औपचारिक परिचय हुआ,फिर हमारा ड्रॉइवर जिसका नाम 'संगीत' था उससे बातें हुई।
मंझोले कद का दुबला पतला भारतीय जो भूटानी जैसा दिख रहा था। बहुत खुशमिजाज लगा, भूटान के बारे में उसे खासी जानकारी थी।
  हमलोग को जयगाँव के लिए निकलने में करीब साढ़े दस बज गये थे। उत्साह से लबरेज हंसते बतियाते समसामयिक विषयों कर चर्चा करते करीब डेढ़ घंटें के बाद हम जयगाँव की सीमा में प्रवेश किये। एक साधारण भारतीय अर्द्धविकसित कस्बाई माहौल लगा।
  सड़क के दोनों ओर अनगिनत ब्रांडेड और नान ब्रांडेड बड़ी-छोटी दुकानें सजी हुई थी रोजमर्रा के सामान के अलावा जरुरत की हर छोटी बड़ी वस्तुएं आसानी से उपलब्ध थी। कुछ भूटानी औरतें,लड़कियाँ खरीदारी करते सामान लिये आधुनिक कपड़ों में सड़कों पर दिख रहीं थी।
 उमस भरा मौसम था। भूटान की सीमा के इस पार कुछ मीटर की दूरी में एक होटल में हमारे रहने का प्रबंध था। सब लोग अति उत्साहित हो रहे थे। हमारे साथ इस घुमक्कड़ ग्रुप में करीब 34 लोग सम्मिलित थे। 
 रिसेप्शन लॉबी में सब तरह तरह की बातें कर रहे थे। रविवार होने की वजह से इमीग्रेशन ऑफिस बंद है जहाँ से हमें भूटान प्रवेश करने के लिए परमिट मिलेगा। अतः आज यही जयगाँव में रुकना है।
 भूटान के मौसम को लेकर सब बढ़-चढ़कर ज्ञान बघार रहे थे...शायद अंदर बारिश हो रही है और टेंपरेचर कम है ऐसा सुनकर कुछ लोग होटल रुम में सामान रखकर छतरी और विंडचिटर खरीदने निकल गये। हम तो अपने साथ गर्म कपड़े लेकर आये थे इसलिए निश्चिंत थे।
बाहर बहुत धूप और उमस थी इसलिए हमने सोचा कि शाम को निकलेंगे घूमने।
हाँलाकि आस-पास के बड़े-बड़े शो रुम, फुटपाथी दुकान कपड़े,जूते,क्रॉकरी और भी मन लुभाते आकर्षक सजावटी वस्तुओं ने और खास कर भूटान का प्रवेश द्वार देखने की उत्सुकता और मीठी की ज़िद ने हमें बाध्य कर दिया कि एक छोटा चक्कर लगा ही आया जाय।
 बाज़ार में खासी चहल-पहल थी थोड़ी दूर ही गये कुछ सजावटी वस्तुओं के सामान के दाम पूछे जो सामान्य लगे पर अनवरत गिरते पसीने और उमस से बेहाल हम ज्यादा न घूम सके। भूटान का द्वार को इस पार से देख-देख कर आहृलादित होकर सपने बुनते हम आइसक्रीम खाकर वापस आ गये।
 दोपहर का भोजन कर आराम कर रहे थे करीब चार बजे हमें रिसेप्शन हॉल में बुलवाया।
 हमारे ट्रिप संयोजक ने एक एजेंट बुलाया था (एक छोटे कद की भूटानी लड़की थी) जो हमारा भूटानी वीज़ा बनवाने में सहायक होती।
 वह ऐजेंट बारी-बारी से सबका पहचान-पत्र देख रही थी। पहचान-पत्र यानि वोटर आई डी या पासपोर्ट आधार कार्ड मान्य नहीं है।
 हम दोनों का वोटर आई डी  भी ओके था परंतु मीठी का आधार कार्ड,स्कूल आई डी या स्कूल डायरी मान्य नहीं था उसका बर्थ सर्टिफिकेट चाहिये
 वरना उसका प्रवेश परमिट नहीं बनेगा अब बर्थ सर्टिफिकेट जो कि हमारे पास फिलहाल मौजूद नहीं था। अब क्या करेंगे? कुछ पल के लिए हम स्वीच ऑफ हो गये। मीठी का रोना शुरु हो गया सुबक-सुबक कर। "हम को भी जाना है भूटान"।
 दूसरी सुबह सब 8 बजे इमीग्रेशन के लिए भूटान प्रवेश द्वार पर स्थित भूटानी शहर फेत्सुलिंग इमीग्रेशन ऑफिस पहुँचना था और हमारे पास सर्टिफिकेट नहीं था। मेरे फ्लैट पर और कोई नहीं था चाभियाँ मेड के पास थी। अगर किसी को भेजकर फ्लैट खुलवा भी लेते तो बर्थ सर्टिफिकेट के साथ अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं इसकी चिंता थी।
 कुछ सूझ नहीं रहा था कैसे इतनी जल्दी इंतजाम हो। शाम हो गयी थी सब जयगाँव घूमने निकल रहे थे हमारा तो मन ही उतर गया था और मीठी का रोना शुरु हो गया सुबक-सुबक कर। "हम को भी जाना है भूटान"।
 उसके पापा चिढ़ा रहे थे "हमलोग एक काम करते है तुम्हारे लिये इस होटल में सब इंतजाम कर देते हैं तुम रहो हमलोग घूमकर तुमको लेते जायेगे।"
 उसका बुक्का फाड़कर रोना और तेज़ हो जाता।
 अच्छा चलो छोड़ो ये सब हम लोग दार्जिलिंग और गंगटोक घूम आते हैं। चिढ़कर और रोने लगती वो।

 काफी सोच कर "इन्होंने" स्कूल की एक टीचर और अपने एल आइ सी एजेंट को को फोन किया।
 स्कूल चूँकि बंद था पर ऑफिस कुछ घंटों के लिए खुलता था उस टीचर ने कहा "सर आप परेशान न हो कल सुबह सबसे पहले स्कूल जाकर सर्टिफिकेट की कॉपी भेज देंगे।
 "एल आई सी वाले न भी कहा ऑफिस जाकर देखते है भैया।"
 थोड़ी उम्मीद की किरण जागी तो मन हल्का हुआ।
 मीठी को काफी मान मनौव्वल के बाद थोड़ा घूमने निकले। शाम की रौनक अच्छी लग रही थी।
 हमारे साथ आये लोग शॉपिंग कर रहे थे ,हमने कुछ नहीं खरीदा कौन लगेज़ भारी करे अभी से ही।
 वापस जल्दी ही लौट आये,अपने कमरे में आकर 
 वहीं हल्का फुल्का डिनर किये।
 अनमने मन से सब बिस्तर में दुबक गये।
 पर सुबह क्या होगा इस इंतजार में करवट बदलते कोई सो ही नहीं पाया।
क्रमश:.......

#श्वेता सिन्हा

Wednesday, 12 June 2019

भूटान-यात्रा-1


बचपन से अपने पड़ोसी देश भूटान के संबंध में जब भी कहीं पढ़ा तो यही कि भूटान आर्थिक रूप से एक गरीब देश है पर भूटान की भूमि में प्रवेश करते ही समझ आ गया कि भूटान की भूमि प्राकृतिक रूप से कितनी समृद्ध है। संतुष्ट और खुशियों से भरपूर जीवन की झलक वहाँ देखकर अपने देश के लोग बहुत याद आये न जाने कितनी बार अनायास ही तुलना करने लगे।
मैंने जितना देखा समझा और जाना भूटान की शांति,खूबसूरत पहाड़ और स्वच्छ ऑक्सीजन युक्त हवा जीवन में एक स्वस्थ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते है।
हमारी यात्रा शुरु हुई टाटानगर रेलवे स्टेशन से
शुक्रवार १७ मई को हावड़ा के लिये। ट्रेन १घंटा १५ मिनट लेट थी।
जमशेदपुर की 40° के तापमान और गर्म हवा के थपेड़ों में भी स्टेशन पर इंतजार करना अच्छा लग रहा था आखिर भूटान यात्रा थी। लेट से आयी ट्रेन में बैठकर हम सब बेहद उत्साहित हो गये थे। हावड़ा उतरकर ,हावड़ा से सियालदाह स्टेशन तक एक प्राइवेट कैब लेकर आये क्योंकि हमारी ट्रेन सियालला से थी, हड़बडी में IIRCTC
के कैंटीन में खाना खाकर चढ़ गये ट्रेन में।
दिनभर की पकाऊ यात्रा से बेहाल ए.सी. कूपे में अपनी सीटों पर बेहद आराम मिला। सब कब सो गये पता भी नहीं चला।
दूसरे दिन यानि १८ मई को ट्रेन में बैठे दौड़ते भागते खूबसूरत दृश्यों को आँखों में भरते करीब 2 बजे अलीपुरद्वार पहुँचे। बहुत सुंदर छोटा सा स्टेशन है।
वहाँ से हमारे ट्रिप संयोजक के द्वारा भेजे गये कार में हम चाय बगान,टोरसा नदी और खूबसूरत जंगल से होते हुये करीब डेढ़ घंटे बाद जलदापाड़ा के रिसोर्ट पहुँचे। सामान रखवाने के लिये तीसरे फ्लोर अपने रुम पहुँचे,दरवाज़ा खुलते आँखें खुली रह गयी तीनों तरफ शीशे के परदे हटे हुये थे और सुपारी के सुंदर करीने से लगे हुये दूर तक फैले पेड़ और चिड़ियों का मधुर कलरव मानो जंगल में किसी पेड़ की शाख पर ठहरे हों हम....अभी सामान रखवा ही रहे थे कि हमें कहा गया खाना खाकर अभी तुरंत निकलना होगा जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान देखने। हमलोग सब जल्दी-जल्दी खाकर जैसे थे वैसे ही चल पड़े गाड़ियों पर सवार होकर।
जलदापाड़ा जंगल-भ्रमण काउंटर से टिकट लिया हमने, खुली जीप जैसी गाड़ियों में हम सब को जंगल घुमाया गया।
जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार उप-मंडल के अंतर्गत जलपाईगुड़ी जिले में स्थित है। यह टोरसा नदी के किनारे है।
समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग ६१मी. और २६१.५१ किलोमीटर तक फैला है।
१९४१ में वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
प्राकृतिक खूबसूरत समेटे इस जंगल में शाम को घूमने का आनंद सच में अविस्मरणीय रहा।
मोटे-मोटे विशाल दैत्याकार वृक्ष आसमान को समेटने के लिए बाहें फैलाये हुये जाने कबसे प्रतीक्षा कर रहे प्रतीत हो रहे थे। जंगल में झींगुर का.शोर कुछ अलग सा एहसास उत्पन्न करता है। बहुत रहस्यमयी लगता है जंगल।
पालतू हाथियों का झुंड और उनके बदमाश बच्चे, (जब हम जीप खड़ी करके उनखी तस्वीर उतार रहे थे हाथी का एक बहुत प्यारा बच्चा पास आकर हमें डराने की कोशिश कर रहा था  मीठी(मेरी बेटी) तो उछल पड़ी खुशी से...)अनगिनत जंगली भैंसा,खूब सारे मोर,सफेद गैंडा, हिरण और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ मंत्रमुग्ध से हम निहारते रहे। जंगल में बीच-बीच में तीन-चार नाले भी दिखाई दिये।
जंगल में एक जगह पार्क सा बना हुआ था हिरण, मोर और जंगली भैंसा आराम से घूमते दिख रहे थे वहाँ हमारे ड्राइवर ने बताया कि
वन-विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए आयोजित स्थानीय नृत्य देखने मिलेगा।
सब लोगों को आदरपूर्वक एक बड़े खुले मैदान में लगे बैंचों पर बैठाया गया और फिर करीब दर्जनभर लड़कियाँ पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करने आयीं..एक अन्य औरत और कुछ छोटी बच्चियाँ अत्यंत सुरीले स्वर में लोकगीत गा रही थीं वहीं पास बैठा एक आदमी मांदर जैसा वाद्य बजा रहा था। गीत के ताल पर थिरकते लयबद्ध पैर भावभंगिमा जादू सा माहौल बना रहे थे।
एक-एक कर चार गाने और प्यारी मासूम लड़कियों का थिरकना कब खत्म हुआ पता ही न चला।  कुल मिलाकर सुमधुर गीत-संगीत संध्या ने शाम को यादगार बना दिया।
शाम घिरने लगी थी और आसमान में बादल भी।
हमारे वापस लौटते ₹-लौटते खूब तेज.बारिश हो गयी। एक शेडनुमा दुकान में हमने भागकर पनाह ली। लगभग आधे घंटे बाद बारिश बंद होने पर वापस होटल पहुँचे। गरमागरम चाय और नाश्ता तैयार मिला।
हम सब चाय पीकर आराम करने लगे नौ डिनर के लिए नीचे गये।
हमें दूसरे दिन सुबह नौ बजे ब्रेकफास्ट करके आगे के सफ़र के लिए तैयार रहने को कहा गया।
बढ़िया स्वादिष्ट गरम खाना खाकर हमलोग दिनभर की बातें करते सो गये।
सुबह चिड़ियों की खिड़की के शीशे पर चोंच से दस्तक की आवाज़ से नींद खुली।
मैना की तीन-चार जोड़ी आपस में खेल रहे थे।
सूरज की नरम किरणें सुपारी के पेड़ों के पीछे से
खिलखिलाकर कमरे में दाखिल हुई मानो नींद से जगाने आयी हो हौले से।
हम सब तैयार होकर नाश्ता करके आस-पास यूँ ही टहलने निकल गये। अनानास के पौधे, काजू के पेड़ और कच्चे फल,खजूर के पेड़ तथा और भी अन्य पौधों से बिटिया का परिचय करवाकर,वापस लौटे तो गाड़ियों में सामान रखा जा रहा था।
अब हम आगे की यात्रा यानि "जयगाँव"के लिये गाड़ी में सवार हो रहे रहे थे।....
जयगाँव में भारत से भूटान प्रवेश करने का द्वार है।


#श्वेता सिन्हा
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चिड़़िया

चीं-चीं,चूँ-चूँ करती नन्हीं गौरेया को देखकर  मेरी बिटुआ की लिखी पहली कविता जो  उसने ५वीं कक्षा(२०१७) में लिखा था  और साथ में उसके द्वारा  बन...