Thursday 29 November 2018

चोर


सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे, मैं घर के कामों में व्यस्त थी।

  चोर! चोर!

 शोर सुनकर मैं बेडरूम की खिड़की से झाँककर देखने लगी। एक लड़का तेजी से दौड़ता हुआ गली में दाखिल हुआ उसके पीछे तीन लोग थे उनमें से एक मंदिर का पुजारी था, सब दौड़ते हुये चिल्ला रहे थे,
 "पकड़ो,पकड़ो चोर है काली माँ का टिकुली(बिंदी) चुराकर भाग रहा है।"

फिर उस चोर लड़के के पीछे भागने वाले में एक ने चोर को दबोच लिया। तब तक कुछ और लोग जुट गये लप्पड़-थप्पड़ ,फैट, घूँसे, माँ-बहन गालियों से जमकर उसकी ख़ातिर करने लगे।

करीब 12-13 साल का होगा वह लड़का,ढंग की बुशर्ट फुलपैंट,साफ-सुथरा रंग, अच्छा सा स्वेटर भी पहन रखा। पहली नज़र में देखने पर किसी सभ्रांत घर का दिखने वाला वह लड़का, भीड़ के रहमो-करम से सहमा हुआ बार-बार आँख पोंछ रहा था और भीड़ में कोई न कोई उसे रह-रहकर "चोर कहीं का" कहकर थप्पड़ जमाये जा रहा था। उस के मुँह से खून बह रहा था,बहुत सहमा हुआ था लड़का।

तभी भीड़ में से किसी ने कहा,"अरे भाई सब काहे मार रहे हो? पुलिस के हवाले कर दो, उसके आगे के शब्द उस व्यक्ति के मुँह में ही रह गया एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा, मुहल्ले के एक रोबदार ठेकेदार ने भद्दी सी गाली देकर कहा, "चुप,ज्यादा हिमायती बन रहा चोर का , कहीं तुम इसके साथी तो नहीं!!
बेचारा गरीब चुपचाप मुँह झुकाये अपनी राह आगे बढ़ गया।

लोग अभी पूछताछ कर रहे थे कि तब तक पुलिस भी आ गयी, पुलिस के सामने सब गोल बनाकर खड़े हो गये और पुलिस उस लड़के से पूछने लगी,
 लड़के के मुँह से बमुश्किल आवाज़ निकल रही थी, आँसू पोंछ-पोंछकर, हाथ जोड़कर सहम-सहमकर टूटी-फूटी आवाज़ में कहने की कोशिश कर रहा था, मेरे पास नहीं है टिकुली , दौड़ने में गिर गया।
"ऐ ,ज्यादा नाटक मत कर बता तेरे गिरोह में कौन-कौन है?
 और क्या-क्या चोरी किया है?" 
पुलिस वाला कह रहा था तेरी इतनी हिम्मत कि दिन-दहाड़े चोरी कर रहा।"

 किसी को इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि वह लड़का कुछ और भी कहना चाह रहा था, बार-बार माँ..माँ कहकर कुछ बताना चाह रहा था,पर भीड़ को किसी चोर की किसी बात से क्या लेना-देना, सब उसके कर्म का हिसाब करने में लगे थे। साथ ही सज़ा की घोषणा भी कर रहे थे , भीड़ के कुछ लोग अपने घर में हुये चोरी के संस्मरण सुनाने लगे।
तब तक मुहल्ले का सबसे नामचीन आदमी भी पहुँच गया, सब उससे डरते हैं, किसी की मज़ाल जो चूँ भी कर सके इसके आगे, रसूख़दार,मार-पीट में आगे,दो नं. के धंधे में सबसे आगे, रंगदारी वसूलना उनके बाँयें हाथ का काम है,एक बड़े नेता का आशीष भी है जिससे सोने पर सुहागा वाला कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है, पुलिसवालों के यहाँ सुबह-शाम की चाय होती है। उस दबंग ने आते ही सबसे पहले उस लड़के का कॉलर खींचकर कस कर चार थप्पड़ लगा दिया फिर बोला, "साला चोर कहीं का, इसी सब की वजह से समाज गंदा हो गया है।"

उसकी बात सुनकर मुझे बहुत हँसी आ रही थी, मेरी दादी अक्सर जो कहावत कहती थी मेरे होंठ बुदबुदा उठे।

"चलनी दूसे सुप्पा के जेकर में खुदे बहत्तर गो छेद"

(अर्थात् दूसरे के अवगुण ढ़ूँढने वाले काश कि कभी तुम अपने चरित्र का अवलोकन कर पाते)

 "बाद में मालूम हुआ वह लड़का अपनी माँ के साथ बस्ती में रहता है , पिता के मरने के बाद सभी रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया है, माँ काम करके उसकी हर जरुरत पूरी करती रही, अचानक जाने क्या हुआ , माँ गंभीर रुप से बीमार पड़ गयी, सप्ताह भर से उसकी माँ किसी अस्पताल में बेहोश पड़ी है, छठी कक्षा में पढ़ने वाले उस लड़के को अस्पताल के किसी कर्मचारी ने कहा कि अगर वह एक लाख रुपया लाकर जमा देगा तो उसकी माँ ठीक हो जायेगी। लड़का बहुत परेशान था, सुबह मंदिर आया तो काली माँ की मूर्ति के माथे की टिकुली देखकर सोचा कि अगर वह इसे बेच देगा तो उसे शायद लाख रुपया मिल जायेगा।"


-श्वेता सिन्हा



6 comments:

  1. अधूरी सी लगी..
    पर है मार्मिक..

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  2. असंतुलित समाज व्यवस्था में अबोध मजबुरी में अपराधी बन जाते हैं। और उनकी सहायता करने वाले कोई नही होते बस ताड़ना मिलती है उन्हें, और अंततोगत्वा वे सचमुच अपराधी बन जाते हैं। और बहुत बार विद्रोही भी।
    मर्मस्पर्शी अच्छी कहानी।

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  3. कमाल की रचना! आगे के अधूरेपन में पूरा का पूरा होम वर्क छोड़ गयी यह कहानी, पाठक और इस समाज के संवेदना-तत्व को!

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  4. बेहतरीन कहानी, समाज के विकृत रूप का चित्रण करती है।

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  5. वाह!!,श्वेता , बहुत सुंदर कहानी !!समाज का असली चेहरा दिखाती हुई ।

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  6. सत्यता के करीब.. हृदयस्पर्शी कहानी।

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