"अरे बिटिया ज़रा एक गिलास पानी ला दे, दवा खा लूँ फिर निकलूँ काम पर" पार्वती ने बेटी मीरा को धीरे से आवाज़ देकर कहा।
"माँ मत जाओ न काम पर आज, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है, अभी कल ही तो तुम्हारा बुखार उतरा है दो-चार दिन आराम कर लो, मैं फोन कर देती हूँ सोसायटी ऑफिस में , या तुम कहो तो जाकर बोल आती हूँ ,मीरा ने पानी का गिलास माँ की हाथों में थमाते हुये कहा।
ना बिटिया,जाना जरुरी है? दो दिन बाद सोसायटी का सालाना जलसा है बहुत काम है, कुछ रुपये बोनस के मिलेंगे तो तेरे लिए जरुरी सिलाई की सामग्री आ जायेगी, गैरहाज़िरी की वजह से वैसे भी सप्ताहभर के पैसे नहीं मिलेंगे।
मीरा ने बहुत समझाया पर पार्वती माने तब न।
आखिर हार कर मीरा ने कहा,
" तुम मानोगी नहीं, अच्छा! तुम तैयार हो जाओ मैं अपनी साइकिल से तुम्हें सोसायटी छोड़ते हुये सेंटर चली जाऊँगी।"
पार्वती अपने पति रामनाथ और बेटी मीरा के साथ
बस्ती में रहती है। रामनाथ सफाई कर्मचारी है एक प्राइवेट अस्पताल में,और पार्वती एक हाऊसिंग सोसायटी में साफ-सफाई का काम करती है। मीरा सरकारी अनुदान से चलाये जाने वाले एक सेंटर में सिलाई-कढाई सीख कुछ ही दिनों में सर्टिफिकेट मिल जायेगा फिर मीरा अपना सेंटर खोलेगी ऐसा सोचा है उसने।
मीरा पार्वती को सोसायटी गेट पर छोड़ते हुये हिदायत देने लगी,"माँ जाने क्यों आज तुम्हें छोड़कर जाने का मन नहीं हो रहा, सुनो ज्यादा काम मत करना, और काम खत्म करके यही गार्ड अंकल के पास बैठना मैं बस दो घंटे में आकर तुम्हें लेतेे हुये घर जाऊँगी।" मीरा चली गयी
पार्वती धीमे क़दमों से गेट से अंदर दाख़िल हुई।
पिछले सात सालों से वह इस सोसायटी में काम कर रही है। चार विंग्स में करीब 100 फ्लैट्स बने हुये हैं। पहाड़ के नाम पर आधारित चारों विंग्स के नाम। धौलागिरी,नीलगिरी,हिमगिरि और उदयगिरि हैं।
मेन गेट से करीब 100 मी. के बाद फ्लैट्स की सीढ़ियाँ शुरु होती थी।
पार्वती "नीलगिरी" की साफ-सफाई का काम देखती है। दस तल्ले में तीस फ्लैट्स है सभी आधुनिक सुविधा से युक्त, प्रवेशद्वार में सी.सी.टीवी कैमरे लगे हैं और लिफ्ट लगा है।
आज पार्वती को मेन गेट से नीलगिरी तक आते-आते थकान महसूस होने लगी।
बीमारी की वजह से कमजोरी लग रही है सोचती हुई लिफ्ट के दरवाजे से चार क़दम दूर सीढि़यों पर बैठ गयी।
"क्या हुआ पार्वती कैसी हो?"
"बड़े दिन बाद दिखाई दी देखो सीढ़ियाँ कितनी गंदी हो गयी हैं।"
"अरे!पार्वती आ गयी तुम? तबियत कैसी है?"
सीढ़ियों से इक्का-दुक्का नीचे आ रहे और ऊपर जा रहे सोसायटी के लोग औपचारिकता से हाल समाचार पूछ रहे थे।
पार्वती भी हल्का-सा मुस्कुरा कर सिर हिला कर जवाब दे रही थी।
सीढ़ियाँ चढ़ने में साँस फूलने लगती है उतरने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती आज लिफ्ट से ही चलती हूँ दस मिनट सुस्ताकर पार्वती सोचती हुई उठी।
आज लिफ्ट खाली पड़ी है!जाने क्यों ! चलो अच्छा है ,उसे असहज नहीं लगेगा। एक बार मेमसाहब और साहब लोगों के साथ लिफ्ट में सवार हुई थी पर उनकी हिकारत भरी दृष्टि से अपने में सकुचा गयी थी।
बिना कुछ बोले ही उसे जता दिया गया कि उसको
उन सबके साथ लिफ्ट में सवार नहीं होना चाहिये था।
तभी से उसने निर्णय लिया था कि कभी अब लिफ्ट से नहीं जायेगी पर आज सीढ़ी चढ़ने की हिम्मत नहीं।
थोड़ी देर असमंजस में खड़ी रही धड़कते दिल से लिफ्ट का बटन दबाया उसने, थोड़ा रुक-रूक कर लिफ्ट का दरवाज़ा खुला जैसे जाम हो और वह दाखिल हो गयी, दसवें माले का बटन दबाकर साँस रोके खड़े गयी। दसवें माले पर लिफ्ट रुका तो बाहर निकलने के लिए उसने एक पैर बाहर निकाला ही था कि अचानक लिफ्ट का दरवाज़ा बंद हो गया और लिफ्ट चल पड़ी..पलभर में मार्मिक चीख से पूरा अपार्टमेंट दहल गया। पार्वती का शरीर लिफ्ट में टुकड़ों में बँटा लहुलुहान पड़ा था।
हृदयविदारक चीख सुनकर आस-पास के लोग दौड़ गये। कुछ ही पल में भीड़ इकट्ठी हो गयी, आनन-फानन पुलिस भी आ गयी। रक्तरंजित लिफ्ट से पार्वती का शव बाहर निकाला गया।
सोसायटी के सेक्रेटरी और अन्य लोग हैरान-परेशान खुसुर-फुसुर कर रहे थे।
पुलिसिया पूछ-ताछ और छान-बीन और सभ्य लोगों के बयान में यह स्पष्ट हो गया कि लिफ्ट में कुछ दिनों से कोई तकनीकी खराबी आ गयी थी इसलिए कोई इसका इस्तेमाल नहीं कर रहा था। लिफ्ट के दरवाजें के पास अंग्रेजी में लिखा हुआ एक नोटिस भी चिपका हुआ था।
सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी।
अब तक पार्वती के समाज के लोग और अन्य सामाजिक संगठन तथा राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता जुट गये थे। सब तरह-तरह के मुआवजे की माँग कर रहे थे। धरना-प्रदर्शन और अन्य हंगामे लफड़ों से बचने के लिए सोसायटी के सेक्रेटरी ने अन्य सदस्यों से सलाह-मशविरा करके बड़ी मुश्किल से दो लाख रुपये का चेक दो दिन बाद देना स्वीकार किया।
सभी तरह की कारवाई और पोस्टमार्टम वगैरह के बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
बस्ती के लोग जो संवेदना प्रकट करने पार्वती के घर आ रहे थे सबकी उत्सुकता मुआवज़े की रक़म को लेकर थी। किसी भी संगठन से कोई मिलने आता एक बार मुआवज़े की राशि का ज़िक्र जरुर करता सभी लोग यह बताने में लगे थे कि मुआवज़ा
उनके प्रयासों से मिल रहा है।
शोक में डूबी मीरा और उसके पिता को दो दिन बाद सोसायटी बुलवाया गया । सालाना जलसा का खूब भव्य आयोजन था,दुल्हन की तरह सजी सोसायटी,तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों की सुगंध फैली थी। चमकीले बिजली के झालर,रंग-बिरंगे शामियाने,कृत्रिम फव्वारे और भी अन्य तरह की सजावट थी। शायद कोई प्रसिद्ध कलाकार आने वाला था।
तय समय में मीरा और उसके पिता पहुँचे, सोसायटी हॉल में सफेद चादर लगाकर एक शोक सभा का आयोजन किया गया था जिसमें स्थानीय पत्रकार,राजनीतिक दल के प्रतिनिधि ,विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और सोसायटी के सदस्य थे।
पर यह शोक-सभा तो किसी भी तरह नहीं लग रहा था, हँसी-मज़ाक से भरपूर माहौल में सकुचायी-सी मीरा और रामनाथ उदास ,अनमने ख़ुद में सिमटे हुये थे।
पार्वती के लिए औपचारिक दो मिनट का मौन और औपचारिक भाषण के पश्चात जब मीरा और रामनाथ को बुलाकर दो लाख के मुआवजे का चेक थमाया गया तो मीरा ने रूंधे गले से कहा-
"इन पैसों से मेरी माँ अब वापस नहीं आ सकेगी , मुझे मुआवज़ा नहीं चाहिये, मेरी विनम्र विनती है सेक्रेटरी जी से कि इन पैसों का उपयोग खराब लिफ्ट को बनवाने में किया जाय ताकि कोई और पार्वती ऐसी दुर्घटना का शिकार न हो।"
-श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी ये रचना मुखरित मौन में शनिवार 29 दिसंबर 2018 को साझा की गई है आप भी आइएगा धन्यवाद https://mannkepaankhi.blogspot.com/
ReplyDeleteभावमय करता लेखन ....
ReplyDelete