बचपन से अपने पड़ोसी देश भूटान के संबंध में जब भी कहीं पढ़ा तो यही कि भूटान आर्थिक रूप से एक गरीब देश है पर भूटान की भूमि में प्रवेश करते ही समझ आ गया कि भूटान की भूमि प्राकृतिक रूप से कितनी समृद्ध है। संतुष्ट और खुशियों से भरपूर जीवन की झलक वहाँ देखकर अपने देश के लोग बहुत याद आये न जाने कितनी बार अनायास ही तुलना करने लगे।
मैंने जितना देखा समझा और जाना भूटान की शांति,खूबसूरत पहाड़ और स्वच्छ ऑक्सीजन युक्त हवा जीवन में एक स्वस्थ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते है।
मैंने जितना देखा समझा और जाना भूटान की शांति,खूबसूरत पहाड़ और स्वच्छ ऑक्सीजन युक्त हवा जीवन में एक स्वस्थ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते है।
हमारी यात्रा शुरु हुई टाटानगर रेलवे स्टेशन से
शुक्रवार १७ मई को हावड़ा के लिये। ट्रेन १घंटा १५ मिनट लेट थी।
जमशेदपुर की 40° के तापमान और गर्म हवा के थपेड़ों में भी स्टेशन पर इंतजार करना अच्छा लग रहा था आखिर भूटान यात्रा थी। लेट से आयी ट्रेन में बैठकर हम सब बेहद उत्साहित हो गये थे। हावड़ा उतरकर ,हावड़ा से सियालदाह स्टेशन तक एक प्राइवेट कैब लेकर आये क्योंकि हमारी ट्रेन सियालला से थी, हड़बडी में IIRCTC
के कैंटीन में खाना खाकर चढ़ गये ट्रेन में।
दिनभर की पकाऊ यात्रा से बेहाल ए.सी. कूपे में अपनी सीटों पर बेहद आराम मिला। सब कब सो गये पता भी नहीं चला।
दूसरे दिन यानि १८ मई को ट्रेन में बैठे दौड़ते भागते खूबसूरत दृश्यों को आँखों में भरते करीब 2 बजे अलीपुरद्वार पहुँचे। बहुत सुंदर छोटा सा स्टेशन है।
वहाँ से हमारे ट्रिप संयोजक के द्वारा भेजे गये कार में हम चाय बगान,टोरसा नदी और खूबसूरत जंगल से होते हुये करीब डेढ़ घंटे बाद जलदापाड़ा के रिसोर्ट पहुँचे। सामान रखवाने के लिये तीसरे फ्लोर अपने रुम पहुँचे,दरवाज़ा खुलते आँखें खुली रह गयी तीनों तरफ शीशे के परदे हटे हुये थे और सुपारी के सुंदर करीने से लगे हुये दूर तक फैले पेड़ और चिड़ियों का मधुर कलरव मानो जंगल में किसी पेड़ की शाख पर ठहरे हों हम....अभी सामान रखवा ही रहे थे कि हमें कहा गया खाना खाकर अभी तुरंत निकलना होगा जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान देखने। हमलोग सब जल्दी-जल्दी खाकर जैसे थे वैसे ही चल पड़े गाड़ियों पर सवार होकर।
जलदापाड़ा जंगल-भ्रमण काउंटर से टिकट लिया हमने, खुली जीप जैसी गाड़ियों में हम सब को जंगल घुमाया गया।
जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार उप-मंडल के अंतर्गत जलपाईगुड़ी जिले में स्थित है। यह टोरसा नदी के किनारे है।
समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग ६१मी. और २६१.५१ किलोमीटर तक फैला है।
१९४१ में वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
प्राकृतिक खूबसूरत समेटे इस जंगल में शाम को घूमने का आनंद सच में अविस्मरणीय रहा।
मोटे-मोटे विशाल दैत्याकार वृक्ष आसमान को समेटने के लिए बाहें फैलाये हुये जाने कबसे प्रतीक्षा कर रहे प्रतीत हो रहे थे। जंगल में झींगुर का.शोर कुछ अलग सा एहसास उत्पन्न करता है। बहुत रहस्यमयी लगता है जंगल।
पालतू हाथियों का झुंड और उनके बदमाश बच्चे, (जब हम जीप खड़ी करके उनखी तस्वीर उतार रहे थे हाथी का एक बहुत प्यारा बच्चा पास आकर हमें डराने की कोशिश कर रहा था मीठी(मेरी बेटी) तो उछल पड़ी खुशी से...)अनगिनत जंगली भैंसा,खूब सारे मोर,सफेद गैंडा, हिरण और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ मंत्रमुग्ध से हम निहारते रहे। जंगल में बीच-बीच में तीन-चार नाले भी दिखाई दिये।
जंगल में एक जगह पार्क सा बना हुआ था हिरण, मोर और जंगली भैंसा आराम से घूमते दिख रहे थे वहाँ हमारे ड्राइवर ने बताया कि
वन-विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए आयोजित स्थानीय नृत्य देखने मिलेगा।
सब लोगों को आदरपूर्वक एक बड़े खुले मैदान में लगे बैंचों पर बैठाया गया और फिर करीब दर्जनभर लड़कियाँ पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करने आयीं..एक अन्य औरत और कुछ छोटी बच्चियाँ अत्यंत सुरीले स्वर में लोकगीत गा रही थीं वहीं पास बैठा एक आदमी मांदर जैसा वाद्य बजा रहा था। गीत के ताल पर थिरकते लयबद्ध पैर भावभंगिमा जादू सा माहौल बना रहे थे।
एक-एक कर चार गाने और प्यारी मासूम लड़कियों का थिरकना कब खत्म हुआ पता ही न चला। कुल मिलाकर सुमधुर गीत-संगीत संध्या ने शाम को यादगार बना दिया।
शाम घिरने लगी थी और आसमान में बादल भी।
हमारे वापस लौटते ₹-लौटते खूब तेज.बारिश हो गयी। एक शेडनुमा दुकान में हमने भागकर पनाह ली। लगभग आधे घंटे बाद बारिश बंद होने पर वापस होटल पहुँचे। गरमागरम चाय और नाश्ता तैयार मिला।
हम सब चाय पीकर आराम करने लगे नौ डिनर के लिए नीचे गये।
हमें दूसरे दिन सुबह नौ बजे ब्रेकफास्ट करके आगे के सफ़र के लिए तैयार रहने को कहा गया।
बढ़िया स्वादिष्ट गरम खाना खाकर हमलोग दिनभर की बातें करते सो गये।
सुबह चिड़ियों की खिड़की के शीशे पर चोंच से दस्तक की आवाज़ से नींद खुली।
मैना की तीन-चार जोड़ी आपस में खेल रहे थे।
सूरज की नरम किरणें सुपारी के पेड़ों के पीछे से
खिलखिलाकर कमरे में दाखिल हुई मानो नींद से जगाने आयी हो हौले से।
हम सब तैयार होकर नाश्ता करके आस-पास यूँ ही टहलने निकल गये। अनानास के पौधे, काजू के पेड़ और कच्चे फल,खजूर के पेड़ तथा और भी अन्य पौधों से बिटिया का परिचय करवाकर,वापस लौटे तो गाड़ियों में सामान रखा जा रहा था।
अब हम आगे की यात्रा यानि "जयगाँव"के लिये गाड़ी में सवार हो रहे रहे थे।....
जयगाँव में भारत से भूटान प्रवेश करने का द्वार है।
शुक्रवार १७ मई को हावड़ा के लिये। ट्रेन १घंटा १५ मिनट लेट थी।
जमशेदपुर की 40° के तापमान और गर्म हवा के थपेड़ों में भी स्टेशन पर इंतजार करना अच्छा लग रहा था आखिर भूटान यात्रा थी। लेट से आयी ट्रेन में बैठकर हम सब बेहद उत्साहित हो गये थे। हावड़ा उतरकर ,हावड़ा से सियालदाह स्टेशन तक एक प्राइवेट कैब लेकर आये क्योंकि हमारी ट्रेन सियालला से थी, हड़बडी में IIRCTC
के कैंटीन में खाना खाकर चढ़ गये ट्रेन में।
दिनभर की पकाऊ यात्रा से बेहाल ए.सी. कूपे में अपनी सीटों पर बेहद आराम मिला। सब कब सो गये पता भी नहीं चला।
दूसरे दिन यानि १८ मई को ट्रेन में बैठे दौड़ते भागते खूबसूरत दृश्यों को आँखों में भरते करीब 2 बजे अलीपुरद्वार पहुँचे। बहुत सुंदर छोटा सा स्टेशन है।
वहाँ से हमारे ट्रिप संयोजक के द्वारा भेजे गये कार में हम चाय बगान,टोरसा नदी और खूबसूरत जंगल से होते हुये करीब डेढ़ घंटे बाद जलदापाड़ा के रिसोर्ट पहुँचे। सामान रखवाने के लिये तीसरे फ्लोर अपने रुम पहुँचे,दरवाज़ा खुलते आँखें खुली रह गयी तीनों तरफ शीशे के परदे हटे हुये थे और सुपारी के सुंदर करीने से लगे हुये दूर तक फैले पेड़ और चिड़ियों का मधुर कलरव मानो जंगल में किसी पेड़ की शाख पर ठहरे हों हम....अभी सामान रखवा ही रहे थे कि हमें कहा गया खाना खाकर अभी तुरंत निकलना होगा जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान देखने। हमलोग सब जल्दी-जल्दी खाकर जैसे थे वैसे ही चल पड़े गाड़ियों पर सवार होकर।
जलदापाड़ा जंगल-भ्रमण काउंटर से टिकट लिया हमने, खुली जीप जैसी गाड़ियों में हम सब को जंगल घुमाया गया।
जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार उप-मंडल के अंतर्गत जलपाईगुड़ी जिले में स्थित है। यह टोरसा नदी के किनारे है।
समुद्रतल से इसकी ऊँचाई लगभग ६१मी. और २६१.५१ किलोमीटर तक फैला है।
१९४१ में वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
प्राकृतिक खूबसूरत समेटे इस जंगल में शाम को घूमने का आनंद सच में अविस्मरणीय रहा।
मोटे-मोटे विशाल दैत्याकार वृक्ष आसमान को समेटने के लिए बाहें फैलाये हुये जाने कबसे प्रतीक्षा कर रहे प्रतीत हो रहे थे। जंगल में झींगुर का.शोर कुछ अलग सा एहसास उत्पन्न करता है। बहुत रहस्यमयी लगता है जंगल।
पालतू हाथियों का झुंड और उनके बदमाश बच्चे, (जब हम जीप खड़ी करके उनखी तस्वीर उतार रहे थे हाथी का एक बहुत प्यारा बच्चा पास आकर हमें डराने की कोशिश कर रहा था मीठी(मेरी बेटी) तो उछल पड़ी खुशी से...)अनगिनत जंगली भैंसा,खूब सारे मोर,सफेद गैंडा, हिरण और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ मंत्रमुग्ध से हम निहारते रहे। जंगल में बीच-बीच में तीन-चार नाले भी दिखाई दिये।
जंगल में एक जगह पार्क सा बना हुआ था हिरण, मोर और जंगली भैंसा आराम से घूमते दिख रहे थे वहाँ हमारे ड्राइवर ने बताया कि
वन-विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए आयोजित स्थानीय नृत्य देखने मिलेगा।
सब लोगों को आदरपूर्वक एक बड़े खुले मैदान में लगे बैंचों पर बैठाया गया और फिर करीब दर्जनभर लड़कियाँ पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करने आयीं..एक अन्य औरत और कुछ छोटी बच्चियाँ अत्यंत सुरीले स्वर में लोकगीत गा रही थीं वहीं पास बैठा एक आदमी मांदर जैसा वाद्य बजा रहा था। गीत के ताल पर थिरकते लयबद्ध पैर भावभंगिमा जादू सा माहौल बना रहे थे।
एक-एक कर चार गाने और प्यारी मासूम लड़कियों का थिरकना कब खत्म हुआ पता ही न चला। कुल मिलाकर सुमधुर गीत-संगीत संध्या ने शाम को यादगार बना दिया।
शाम घिरने लगी थी और आसमान में बादल भी।
हमारे वापस लौटते ₹-लौटते खूब तेज.बारिश हो गयी। एक शेडनुमा दुकान में हमने भागकर पनाह ली। लगभग आधे घंटे बाद बारिश बंद होने पर वापस होटल पहुँचे। गरमागरम चाय और नाश्ता तैयार मिला।
हम सब चाय पीकर आराम करने लगे नौ डिनर के लिए नीचे गये।
हमें दूसरे दिन सुबह नौ बजे ब्रेकफास्ट करके आगे के सफ़र के लिए तैयार रहने को कहा गया।
बढ़िया स्वादिष्ट गरम खाना खाकर हमलोग दिनभर की बातें करते सो गये।
सुबह चिड़ियों की खिड़की के शीशे पर चोंच से दस्तक की आवाज़ से नींद खुली।
मैना की तीन-चार जोड़ी आपस में खेल रहे थे।
सूरज की नरम किरणें सुपारी के पेड़ों के पीछे से
खिलखिलाकर कमरे में दाखिल हुई मानो नींद से जगाने आयी हो हौले से।
हम सब तैयार होकर नाश्ता करके आस-पास यूँ ही टहलने निकल गये। अनानास के पौधे, काजू के पेड़ और कच्चे फल,खजूर के पेड़ तथा और भी अन्य पौधों से बिटिया का परिचय करवाकर,वापस लौटे तो गाड़ियों में सामान रखा जा रहा था।
अब हम आगे की यात्रा यानि "जयगाँव"के लिये गाड़ी में सवार हो रहे रहे थे।....
जयगाँव में भारत से भूटान प्रवेश करने का द्वार है।
#श्वेता सिन्हा
----
व्वाहहहहह...
ReplyDeleteआभार...
सादर...
भूटान यात्रा -1 की जीवंत वृत्तांत के बाद 2 का भी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा ....
ReplyDeleteभूटान यात्रा -1 की जीवंत वृत्तांत के बाद 2 का भी बेसब्री से इंतज़ार रहेगा ....
ReplyDeletegreat, and thanks the detail description of Bhutan . We feel like roaming in Jaldapara.
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर खुशी मिली
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के साथ रोचक यात्रा-वर्णन ! अगली कड़ी का इंतज़ार है.
ReplyDeleteसुन्दर और रोचक यात्रा वृत्तान्त
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!श्वेता, बहुत ही रोचक शैली में यात्रा वर्णन किया है आपनेंं । भाग 2 का इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteवाह शानदार यात्रा संस्मरण। लगता है सब कुछ आंखों के सामने चल रहा है आगे की यात्रा बिल्कुल नई होगी तो रुचि और भी बढ़ गयी है इंतजार है अगली कड़ी का।
ReplyDeleteलेखन शैली बहुत आकर्षक और रोचक।
बेहद खूबसूरत ...., रोचक यात्रा वृन्तात । अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा ।
ReplyDeleteअति सुंदर लेख
ReplyDeleteबेहतरीन सफर की शुरुआत श्वेता जी ,सफर रोचक रहे
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरों के साथ रोचक यात्रा वृत्तांत.....
ReplyDeleteलेखन शैली हमेशा की तरह प्रभावी एवं आकर्षक।
सुंदर चित्रण।
ReplyDelete