Monday, 19 November 2018

देव प्रबोधिनी एकादशी



कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है । इन दोनों शब्दों से स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति के खुद के हाथ में है कि वह अपने भीतर के 'देवत्व' को जागृत कर सकता है क्योंकि प्रबोधन शब्द का आशय ही जागना, यथार्थ ज्ञान और पूर्ण बोध होने से है।  जीवन में हर पल ज्ञान हासिल किया जा सकता है क्योंकि ज्ञान अनन्त है । ज्ञान को ही  भगवान माना गया है । जीवन के बारे में ज्ञान होते ही काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या-द्वेष आदि अंधकार से मुक्ति मिलती है और जीवन भगवान विष्णु के वैकुंठ या सत्यलोक जैसा आह्लादकारी हो जाता है ।
इसी दिन तुलसी से भगवान विष्णु का विवाह होता है । इस ब्रह्मांड में भगवान सूर्य को विष्णु का रूप माना जाता है । श्रीमद्भगवत गीता में नारायण अवतार कृष्ण ने कहा भी है कि मैं ही सूर्य हूँ । सभी जानते हैं कि सूर्य की किरणों से ऊर्जा मिलती है । आयुर्वेद के अनुसार तुलसी के पौधे से भी ऊर्जा-तरंगे निकलती हैं । तुलसी के पेड़ की परिधि के दो सौ मीटर तक जीवनदायिनी ऊर्जा तरंगें निकलती है । आध्यात्मिक ग्रन्थों में कहा गया है कि जहां तुलसी के पेड़ होते हैं, वहां आकाशीय बिजली नहीं गिरती है । वह परावर्तित हो जाती हैं । इस तरह सूर्य की किरणों तथा धरती पर स्थित किरणों में आपसी सामंजस्य विवाह-बंधन जैसा है ।
 
प्राचीन काल मे विवाह का स्वरूप बड़ा विकृत हुआ करता था । ताकत के बल पर किसी नारी को बलपूर्वक अपनी पत्नी बना लेने की प्रथा थी । पुराणों में जलन्धर, शंखासुर, शंखचूड़ नामक दैत्यों की कथा है कि इन सबने ने तुलसी को बलपूर्वक पत्नी बना लिया था । उस काल में पत्नी का दायित्व होता था कि वह एक पति के प्रति पूर्ण समर्पित रहे । तुलसी के पूर्व पति का नाम जलन्धर था । वृन्दा के सतीत्व से जलन्धर महाबली हो गया । बल की प्रवृत्ति है कि वह ज्ञान का अपहरण कर लेता है और अहंकार को जन्म देता है । भगवान विष्णु का जलन्धर का रूप धारण करना 'शठ के साथ शठता' का उदाहरण तथा नारी के सम्मान का सूचक है । वृन्दा के शाप तथा पत्नी होने की कथा से स्पष्ट है कि वह यह सन्देश दे रही है कि व्यक्ति कभी भी जलन्धर का रूप न धारण करे तथा नारी-सम्मान पर आघात न पहुंचाए । इस प्रकार का आश्वासन मिलते ही तुलसी का शालग्राम के रूप में विष्णुजी से विवाह हुआ । शालग्राम एक विशेष प्रकार का पत्थर है जो हिमालय और गंडकी नदी में पाया जाता है। पत्थर होने का निहतार्थ नारी के प्रति चंचल भाव त्याग कर दृढता से लेना ज्यादा उपयुक्त है । 'प्रबोध' शब्द का अर्थ 'आश्वासन' भी होता है । अन्य दैत्यों की भी कथा इसी तरह की है । कार्तिक महीना दान का महीना है । ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति का रूप बिगड़ जाता है । आकाशमण्डल में स्थित सूर्य का रूप बड़ा कठोर हो जाता है । पृथ्वी की हरीतिमा, जल को अवशोषण हो जाता है । लेकिन जब भगवान विष्णु के योगनिद्रा से उठने का समय आता है तो प्रकृति में अनुकूलता आने लगती है । आकाश से खुशहाली का दान होने लगता है । अंतरिक्ष के इस दानी स्वरूप के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए इसे एक महापर्व बनाया गया । इस एकादशी तिथि से विवाहादि शुभ कर्म और अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं । इस तरह कार्तिक एकादशी अध्यात्म के साथ वैज्ञानिक तथा सामाजिक सरोकारों को जानने का भी पर्व है ।

साभार
संकलित

13 comments:

  1. अति सुंदर स्वेता जी

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    1. त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सुप्रिया जी।
      सादर ।

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    1. सादर आभार प्रिय अनिता जी।
      बेहद शुक्रिया आपका।

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  3. वाह!!श्वेता ,सुंदर जानकारी से सजा लेख ।

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  4. सारगर्भित एवं ज्ञानवर्धक लेख। उपयोगी संकलन।
    भारतीय संस्कृति में त्यौहारों की महत्ता सामाजिक मूल्यों की स्थापना से जुड़ी है। एक पतिव्रता नारी का पतिव्रत धर्म भंग करने का भगवान विष्णु ने संसार की भलाई के लिये जो दुस्साहस किया उसे अनेकानेक तर्क-वितर्कों से महिमामंडन करने हेतु व्याख्यायें प्रस्तुत की गयीं किन्तु मानव मन इसे आज भी स्वीकार नहीं करता है।
    तुलसी के एंटी वायरल गुणों ने पीड़ित मानवता की भरपूर सेवा की है जिसे आज विज्ञान भी स्वीकारता है।

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  5. भारतीय संस्कृति और परम्पराओं में गूढ़ रहस्य छिपे हुए हैं ,आपको भी देव प्रभोधनी एकादशी की बधाई

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  6. अच्छे जानकारी के साथ बहुत ही सारगर्भित पोस्ट ... इतना कुछ नहि पता था इससे पहले ... एक अच्छी शुरुआत है आपकी ...

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  7. सटीक जानकारी - बधाई

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  8. जानकारी और आस्था से परिपूर्ण सुंदर प्रस्तुति श्वेता ,
    हर त्योहार पर आपकी उस से संबधित जानकारी और पावन आस्था सदा पोस्ट पर दृष्टि गोचर होती है ।
    साधुवाद।

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  9. बहुत सुन्दर , ज्ञानवर्धक लेख...

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  10. बहुत अच्छा लिखा आपने श्वेता जी , धन्यवाद

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