कृष्ण शब्द के उच्चारण से एक माधुर्य मन वीणा की तारों में झंकृत होता है और एक अलौकिक संगीत का प्रवाह शिराओं को जग के बंधनों से मुक्त कर अनंत सुख का अनुभव कराते है।
रटते है जो कृष्ण का नाम,
नहीं पड़ते है जग बंधन में
ढ़ाई आखर कृष्ण नाम का
भवपार करे चिर नंदन में
रहस्यमयी कृष्ण की अद्भुत लीलाएँ आम जन के लिए चमत्कारिक है जो उनके व्यक्तित्व को सर्वश्रेष्ठ पुरुष और पूजनीय बनाती है। विलक्षणता से परिपूर्ण श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन उद्देश्यपूर्ण और शिक्षाप्रद रहा।
उनकी मोहक बाल लीलाएँ हृदय में वात्सल्य की गंगा बहाती है और अच्छे-अच्छे तर्क शास्त्री उलझ जाते है आखिर उनके व्यक्तित्व का रहस्य क्या है?
कृष्ण धरती पर साक्षात परबह्म के अवतार थे,सर्वशक्तिमान,अजन्मा होकर भी कंस के कारागृह में उनका जन्म होता है सासांरिक चक्रों के अनुसार,जन्मदात्री माँ और पिता से दूर माता यशोदा और बाबा नंद के आँगन में बाल-जीवन के बहुमूल्य वर्ष व्यतीत करते हैं।
योगमाया के स्वामी श्री कृष्ण,जिनके बंधन में संपूर्ण सृष्टि है वो सहज भोलेपन से यशोदा के द्वारा ऊखल में बंधकर छूटने की गुहार लगाते हैं। माता यशोदा के जैसा सौभाग्यशाली दूसरा भला कौन होगा जिसके गोदी में स्वयं,साक्षात ईश्वर खेलते हों। ऐसा वात्सल्य,ऐसा आनंद प्राप्त करने वाली माता को नमन है।
नंदलाल जी नौ लाख गायों के स्वामी व्रजराज हैं,पर कृष्ण गाय चराने जाते हैं। प्रकृति प्रेम,जीव प्रेम का ऐसा उदाहरण भला कहाँ मिल सकता है।
समस्त संसार को जो अपनी आँखों में रखते है उस कमलनयन प्रभु की माता डिठौना लगाकर नज़र उतारती है।
जगत के पालन हार प्रभु गोकुल के घर-घर से दधि और माखन चुराते हैं। चुटकीभर माखन के लिए चिरौरी करते हैं। कितना अद्भुत है न संसार की संपूर्ण विभूतियां जिनके चरणों की दास है वह भक्तवत्सल भगवान माता यशोदा के पीछे-पीछे घूमकर कहते हैं-
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो |
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥
ऋषि दुर्वासा भी उनका धूल धूसरित,दधिमुख लिपटे,बाल-सखा संग दौड़ते-भागते कृष्ण का रुप को देखकर भ्रमित होकर कहते है ये कृष्ण नहीं ये तो नंदपुत्र है।
प्रेम का सबसे शुद्ध अलौकिक रुप जो कृष्ण ने सिखाया वैसा दर्शन विरल है। पूरा गोकुल उनके मोहपाश में बँधा हुआ है। उनकी बंसुरी की मनमोहक धुन में गोपियों के जीवन का रस है।
राधा और कृष्ण का प्रेम ,प्रेम के सर्वोच्च भावों की पराकाष्ठा है। कृष्ण की रास लीला सांसारिक दृष्टि से मनोरंजन मात्र हो,परंतु विराट प्रकृति और संपूर्ण पुरुष का मिलन शुद्ध, अलौकिक और आध्यात्मिक है जिसमें काम भाव का कोई अस्तित्व नहीं।
उपासक का प्रभु में विलीन हो जाना,सुधि भुलाकर संपूर्ण समर्पण,जिसमें तन नहीं मन क्रियाशील है।
मोरमुकुट धारी,यमुनातट पर गोपियों संग ठिठोली करते,मटकी फोड़ते,माखन चुराते,बंशी बजाते,गोवर्धन को उंगली पर लेकर गोकुलवासियों को भयमुक्त करते कृष्ण मोहिनी फैलाकर,सबके हृदय में छवि बसाकर मथुरा आ जाते है।
जीवन में कर्म ही प्रधान है,सर्वोपरि है, का संदेश प्रेषित करते कृष्ण एक महान राजनीतिज्ञ,क्रान्ति विधाता,धर्म पर आधारित नवीन साम्राज्य के स्रष्टा और राष्ट्र नायक के विराट स्वरुप में स्थापित हो जाते हैं।
कृष्ण के महाभारतयुगीन सामाजिक व्यवस्था में खामियाँ दृष्टिगत होने लगी थी। रिश्तों में आपसी मूल्य खोने लगे थे। सत्ता की लोलुपता में सौहार्द, प्रेम नष्ट होने लगा था,विलासी,मतांध,अत्याचारी महाबली,निरंकुश,नराधम और महापराक्रमी राजाओं जैसे,कंस,जरासंध,शिशुपाल के आतंक से प्रजा दुखी थी। गुरु भी स्वार्थ और मोह के वशीभूत धन और पद के लिए शिक्षा प्रदान करने में लगे थे।
नारी अपने सम्मान के लिए भिक्षुणी थी।
ऐसी परिस्थिति में सुसंगठित नेतृत्व,दूरदर्शी नीति,विलक्षण बुद्धिमत्ता से कृष्ण ने सर्वजनहित राष्ट्र की स्थापना करने में अपना बहुमूल्य सहयोग किया।
निष्काम कर्मयोगी श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में सुदर्शन चक्र और बाँसुरी का अद्भुत समन्वय है।
युद्ध के मैदान में अर्जुन को जीवन के गूढ़ रहस्य समझाते कृष्ण एक उत्कृष्ट मनोवैज्ञानिक जैसे ही लगते हैं। सुदामा के साथ किया गया उनका व्यवहार आदर्श मित्र के मूल्य स्थापित करता है।
श्री कृष्ण एक ऐसा चरित्र है जो बाल,युवा,वृद्ध,स्त्री पुरुष सभी के लिए आनंदकारक हैं।
कृष्ण का अवतरण अंतःकरण के ज्ञान चक्षुओं को खोलकर प्रकाश फैलाने के लिए हुआ है।
भगवत गीता में निहित उपदेश ज्ञान,भक्ति,अध्यात्म,सामाजिक,वैज्ञानिक,राजनीति और दर्शन का निचोड़ है जो जीवन में निराशा और नकारात्मकता को दूर कर सद्कर्म और सकारात्मकता की ज्योति जगाता है।
*बिना फल की इच्छा किये कर्म किये जा।
*मानव तन एक वस्त्र मात्र है आत्मा अजर-अमर है।
*क्रोध सही गलत सब भुलाकर बस भ्रम पैदा करता है। हमें क्रोध से बचना चाहिए।
*जीवन में किसी भी प्रकार की अति से बचना चाहिए।
*स्वार्थ शीशे में पड़ी धूल की तरह जिसमें व्यक्ति अपना प्रतिबिंब नहीं देख पाता।
*आज या कल की चिंता किये बिना परमात्मा पर को सर्वस्व समर्पित कर चिंता मुक्त हो जायें।
*मृत्यु का भय न करें।
और भी ऐसे अनगिनत प्रेरक और सार्थक संदेश हैंं जो भौतिक संसार की वास्तविकता से परिचित कराते हैं।
कर्म के संबंध में श्रीकृष्ण के बेजोड़ विचार अनुकरणीय है। भटकों को राह दिखाता उनका जीवन चरित्र उस दीपक के समान है जिसकी रोशनी से सामाजिक चरित्र की दशा और दिशा में कल्याणकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है उनके गुणों का आस्वादन कर आत्मविभोर होने का आनंद किसी अमृतपान से कम नहीं।
मेरे विचार से कृष्ण जैसे मात्र कृष्ण ही हैं।
-श्वेता सिन्हा
sweta sinha जी बधाई हो!,
आपका लेख - (कृष्ण जैसे कृष्ण ही हैं।) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
वाह !!!!! प्रिय श्वेता-- आज तो कृष्ण के भाव रस में डूबकर वो लिख दिया कि मन भाव विभोर हो उठा | भारतीय संस्कृति के सुदृढ़ स्तम्भ है कृष्ण और राम | ये ना होते तो संस्कृति मरनासन्न होती | ये जनमानस का विराट अवलम्बन और अद्रश्य शक्ति हैं | कर्मपथ के प्रणेता श्री कृष्ण राजनीती , कूटनीति में बेजोड़ तो उनके बाला रूप स कौन सम्मोहित नहीं होता | चौसठ कला सम्पूर्ण , और कवियों के अनुसार हजार पंखुड़ीयों के कमल हैं कान्हा | इस भक्ति रस से सराबोर ज्ञानवर्धक और ओज भरे लेख के लिए क्या कहूं ? बस मेरा प्यार !!! और जन्माष्टमी की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें और बधाई मेरी और से | सस्नेह
ReplyDeleteसादर आभार रेणु दी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
वाह! बालक से लेकर भगवान तक विस्तृत कृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व के विराट सबरंग क्षितिज को छूने का बड़ा सुरुचिपूर्ण और सार्थक प्रयास! श्री कृष्णजन्मअठमी की अशेष शुभकामनायें, सपरिवार!!!
ReplyDeleteसादर आभार विश्वमोहन जी।
Deleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया।
वाह ... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteकृष्णमय होता ब्लॉग और ये पोस्ट ... जैसे कान्हा से योगिराज बनने की दास्तान शब्दों में उतार दी ... कृष्ण अपने आप में ये पृथ्वी मंडल है जहाँ इंसान का जन्म उसकी लीला का एक हिस्सा है ... कर्म का ज्ञान और चेतना को चेतन करता उनका दर्शन ... एक अंश भी कोई कृष्ण बन जाए तो जीवन सफल है ...
बहुत बहुत बधाई जन्माष्टमी की ...
सादर आभार नासवा जी।
Deleteहृदयतल से अति आभार।
बहब ही सुन्दर और प्रेरणास्पद लेख कृष्ण जैसे तो कृष्ण ही है उनकी तुलना भला किससे हो सकती
ReplyDeleteहै ।
बहुत
Deleteसादर आभार अभिलाषा जी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
अगर आप कृष्ण पर कुछ लिखने बैठते हो तो, उस बहु आयामी व्यक्तित्व वाले श्री कृष्ण पर, अगर उन्हें भगवान न भी मानों तो भगवान के समकक्ष रख कर ही उनके व्यक्तित्व का पुरा विश्लेषण करना होगा,
ReplyDeleteऔर श्वेता आपने बहुत मन मोहक ढंग, गतिशीलता बनाये रखते हुवे उनके सम्पूर्ण जीवन को बेहद सुंदर ढंग से प्रकाशित कर एक डोर में फूलों सा पिरो दिया है। ये लेख माला अभिराम, अवर्चणिय मन को प्रसन्न करने वाली है।
सदा ऊंचाइयों को अग्रसित रहो।
शुभाशीष ।
सादर आभार दी।
Deleteआपका स्नेह ऊर्जा प्रदान करता है।
सस्नेह शुक्रिया।
बेहद खूबसूरत दिल को छू लेने वाला लेख लिखा आपने श्वेता जी
ReplyDeleteसादर आभार अनुराधा जी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
वाह!!श्वेता ,आपने तो संपूर्ण कृष्ण को सजीव कर दिया !!!!!
ReplyDeleteसादर आभार शुभा दी
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
वाह ... बहुत सुंदर दिल को छू लेने वाला लेख लिखा आपने श्वेता जी
ReplyDeleteकौन है जो कृष्ण के रंग में रंगने से बच पाया है | फिर आपने तो श्रीकृष्ण के नटखट नन्द किशोर से योगी राज बनने तक की दास्तान का सुंदर वर्णन किया है | हम सब को श्रीकृष्ण के रंग में रंगने के लिए आप का शुक्रिया
ReplyDeleteसादर आभार वंंदना जी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
कृष्ण जैसे कृष्ण ही हो सकते हैं
ReplyDeleteऔर इन जैसा कोई नहीं
सादर आभार लोकेश जी।
Deleteहृदयतल से बेहद.शुक्रिया।
बहुत सुंदर प्रेरित करने वाले आलेख
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं