ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
और काल ने अपने क्रूर प्रहार कर हमारे प्रिय युगपुरुष को हमसे छीन लिया।
मेरी राजनीतिक अभिरुचि सदैव न के बराबर रही है। परंतु बुद्धिजीवी वर्ग का मान रखते हुये सामान्य ज्ञान के लिए बेमन से ही सही पढ़ती-सुनती रही हूँ।
पर अटल जी इकलौते ऐसे राजनीतिक व्यक्तित्व है जिनसे मैं सदा प्रभावित रही।
अटल बिहारी वाजपेयीका नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरी स्याही से लिखा गया है जिसकी स्वर्णिम आभा युगों तक दैदीप्यमान रहेगी।
राजनीतिक नेताओं की छवि से अलग एक सहज,सरल,विवेकशील व्यक्तित्व जिन्होंने विपक्षी दल को भी अपनी वाकपटुता , ओजस्विता, निडरता और सांस्कृतिक मूल्यों के द्वारा सहज सम्मोहित कर लिया।
अटल जी का जन्म 25 जनवरी 1924 ई. को मध्यप्रदेश मेंं स्थित ग्वालियर के शिंदे की छावनी में हुआ था। विद्वान शिक्षक और सम्मानित कवि पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी की संतान के रुप में जन्मे अटल जी ने ग्वालियर में रहकर अपनी शिक्षा पूर्ण की। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर कानपुर के डी.ए.वी कॉलेज से प्राप्त की।
छात्र जीवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सक्रिय सदस्य के रुप में काम किया।
फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल के संपर्क में आये और लंबे समय तक राष्ट्रधर्म,पांचञ्जन्य और वीर अर्जुन जैसी पत्रिकाओं का सफल संपादन करने वाले अटल जी को सत्य और नैतिकता का प्रणेता कहना उचित होगा।
12 बार सांसद और 3 बार प्रधानमंत्री रुप में जनप्रतिनिधि चयनित होने वाले वाजपेयी जी का सक्रिय राजनीतिक में पदार्पण 1955 में हुआ।
24 राजनीतिक दलों के गठबंधन की सरकार चलाने का करिश्मा वाजपेयी जी ही कर सकते थे जो उन्होंने भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रुप में किया। एक गैर क्रांग्रेसी प्रधानमंत्री के रुप में अनेक चुनौतियों का बुद्धिमत्ता पूर्ण सामना कर कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
अटल जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया और राष्ट्रभाषा को सम्मानित किया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को पहचान दिलाने वाले अटल जी ने परमाणु शक्ति के परीक्षण में अपना निडर और साहसिक योगदान हुआ।
पाकिस्तान के साथ रिश्तों को नया जीवन देने का प्रयास किया।
अटल जी नेहरु युगीन ससंदीय गरिमा के स्तंभ है। आज करोड़ो भारतीयों के लिए विश्वसनीयता और सहिष्णुता का प्रतीक हैं।
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से परिपूर्ण और सत्यम् शिवम् सुंदरम् के विचारों को महत्त्व देने वाजपेयी सिद्धांतवादी राजनेता रहे।
इनकी वाकपटुता से प्रभावित होकर
लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी ने कहा था,"इनके कण्ठ में सरस्वती का वास है।"
और नेहरु जी ने "अद्भुत वक्ता" की विश्वविख्यात छवि से नवाजा।
अटल जी देश सेवा,भारतीय संस्कृति,मानवीयता,राष्ट्रीयता तथा उच्च जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं।
भारत रत्न , पद्म विभूषण ,सर्वश्रेष्ठ सांसद, सबसे ईमानदार व्यक्ति जैसे अलंकरण से विभूषित ऐसी विभूति का अवतरण भारत के लिए गौरव का विषय है।
आज राजनीति के गिरते मूल्यों और गलाकाट प्रतियोगिता की संस्कृति से परे उनकी प्रार्थना प्रशंसनीय है-
मेरे प्रभु!
मुझे कभी इतनी ऊँचाई मत देना,
गैरों को गले लगा न सकूँ
इतनी रुखाई मत देना
संवेदनशील कवि वाजपेयी जी की रचनाएँ बेहद हृदयस्पर्शी है।
आप भी पढ़िए उनकी कुछ रचनाएँ मेरी पसंद की
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गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूँँ
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बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
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दूध में दरार पड़ गई।
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए;
कलेजे में कटार गड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छन्द
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है;
वसंत से बहार झड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता,
तुम्हें वतन का वास्ता;
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
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पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥
जिनकी लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई।
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई॥
कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥
हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥
इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है,डालर मन में मुस्काता है॥
भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कण्ठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख़्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन ग़ुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
सादर श्रद्धा भावांजलि
-श्वेता सिन्हा
भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🌼🙏🙏🇮🇳🙏🙏🌼
ReplyDeleteशब्द सारे खो गए
ReplyDeleteकलम हो गई कुन्द
बन गया इतिहास
विश्व चहेता अटल
सादर नमन...
भावभीनी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteभावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏
ReplyDeleteयुगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयीजी के अद्भुत व्यक्तित्व और कृतित्व को आपकी तुलिका से प्रवाहित शब्दांजलि का आभार. उनकी काव्य कला की बहुरंगी छटा उनके कोमल ह्रदय का वातायन है. उस विलक्षण आत्मा की अभ्यर्थना में अर्पित आपके स्वर में अर्चना के हमारे समवेत स्वर समर्पित हैं. नमन!!!
ReplyDeleteHmesha ki trh 🙏❤grv hai
ReplyDeleteवाह प्रिय श्वेता -- एक सुघढ़ कवयित्री की अनुपम श्रध्दान्जली एक भावुल कवि प्रखर वक्ता और जननायक के प्रति !!!!!!!!! उनको समर्पित उनकी रचनाओं से सजा ये श्रद्धान्जली आलेख उनके उद्दत विचारों का दर्पण है | वे राजनीती के पंक में खिले पावन कमल थे | उन्हें शत शत नमन | वे सशरीर भले ही दुनिया में नहीं अपने विचारों के रूप में अटल अमर रहेंगे |
ReplyDeleteमौन नमन 🙏 स्वीकार करें
ReplyDeleteअटल अटल से थे सदा
अटल अटल रही जाये
कालजई गर मर सकते तो
कालजई क्यों कहलाये !
✊✊✊🇮🇳
बहुत उम्दा
ReplyDeleteनमन
नमन है युग पुरुष को ... राजनीति की धार बदलने वाले... कवी दिल सादे और उच्च विचार वाले पथिक को नमन ...
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