जयगाँव स्थित भूटान-प्रवेश द्वार
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हम जिस गाड़ी में सवार हुये उसमें हम तीन लोग यानि मैं,मेरी बिटिया और उसके पापा के साथ एक सरदार अंकल-आंटी,एक बंगाली अंकल-आंटी थे।
ड्रॉइवर मिलाकर कुल 8 लोग।
सबके साथ उनसे औपचारिक परिचय हुआ,फिर हमारा ड्रॉइवर जिसका नाम 'संगीत' था उससे बातें हुई।
मंझोले कद का दुबला पतला भारतीय जो भूटानी जैसा दिख रहा था। बहुत खुशमिजाज लगा, भूटान के बारे में उसे खासी जानकारी थी।
हमलोग को जयगाँव के लिए निकलने में करीब साढ़े दस बज गये थे। उत्साह से लबरेज हंसते बतियाते समसामयिक विषयों कर चर्चा करते करीब डेढ़ घंटें के बाद हम जयगाँव की सीमा में प्रवेश किये। एक साधारण भारतीय अर्द्धविकसित कस्बाई माहौल लगा।
सड़क के दोनों ओर अनगिनत ब्रांडेड और नान ब्रांडेड बड़ी-छोटी दुकानें सजी हुई थी रोजमर्रा के सामान के अलावा जरुरत की हर छोटी बड़ी वस्तुएं आसानी से उपलब्ध थी। कुछ भूटानी औरतें,लड़कियाँ खरीदारी करते सामान लिये आधुनिक कपड़ों में सड़कों पर दिख रहीं थी।
उमस भरा मौसम था। भूटान की सीमा के इस पार कुछ मीटर की दूरी में एक होटल में हमारे रहने का प्रबंध था। सब लोग अति उत्साहित हो रहे थे। हमारे साथ इस घुमक्कड़ ग्रुप में करीब 34 लोग सम्मिलित थे।
रिसेप्शन लॉबी में सब तरह तरह की बातें कर रहे थे। रविवार होने की वजह से इमीग्रेशन ऑफिस बंद है जहाँ से हमें भूटान प्रवेश करने के लिए परमिट मिलेगा। अतः आज यही जयगाँव में रुकना है।
भूटान के मौसम को लेकर सब बढ़-चढ़कर ज्ञान बघार रहे थे...शायद अंदर बारिश हो रही है और टेंपरेचर कम है ऐसा सुनकर कुछ लोग होटल रुम में सामान रखकर छतरी और विंडचिटर खरीदने निकल गये। हम तो अपने साथ गर्म कपड़े लेकर आये थे इसलिए निश्चिंत थे।
बाहर बहुत धूप और उमस थी इसलिए हमने सोचा कि शाम को निकलेंगे घूमने।
हाँलाकि आस-पास के बड़े-बड़े शो रुम, फुटपाथी दुकान कपड़े,जूते,क्रॉकरी और भी मन लुभाते आकर्षक सजावटी वस्तुओं ने और खास कर भूटान का प्रवेश द्वार देखने की उत्सुकता और मीठी की ज़िद ने हमें बाध्य कर दिया कि एक छोटा चक्कर लगा ही आया जाय।
बाज़ार में खासी चहल-पहल थी थोड़ी दूर ही गये कुछ सजावटी वस्तुओं के सामान के दाम पूछे जो सामान्य लगे पर अनवरत गिरते पसीने और उमस से बेहाल हम ज्यादा न घूम सके। भूटान का द्वार को इस पार से देख-देख कर आहृलादित होकर सपने बुनते हम आइसक्रीम खाकर वापस आ गये।
दोपहर का भोजन कर आराम कर रहे थे करीब चार बजे हमें रिसेप्शन हॉल में बुलवाया।
हमारे ट्रिप संयोजक ने एक एजेंट बुलाया था (एक छोटे कद की भूटानी लड़की थी) जो हमारा भूटानी वीज़ा बनवाने में सहायक होती।
वह ऐजेंट बारी-बारी से सबका पहचान-पत्र देख रही थी। पहचान-पत्र यानि वोटर आई डी या पासपोर्ट आधार कार्ड मान्य नहीं है।
हम दोनों का वोटर आई डी भी ओके था परंतु मीठी का आधार कार्ड,स्कूल आई डी या स्कूल डायरी मान्य नहीं था उसका बर्थ सर्टिफिकेट चाहिये
वरना उसका प्रवेश परमिट नहीं बनेगा अब बर्थ सर्टिफिकेट जो कि हमारे पास फिलहाल मौजूद नहीं था। अब क्या करेंगे? कुछ पल के लिए हम स्वीच ऑफ हो गये। मीठी का रोना शुरु हो गया सुबक-सुबक कर। "हम को भी जाना है भूटान"।
दूसरी सुबह सब 8 बजे इमीग्रेशन के लिए भूटान प्रवेश द्वार पर स्थित भूटानी शहर फेत्सुलिंग इमीग्रेशन ऑफिस पहुँचना था और हमारे पास सर्टिफिकेट नहीं था। मेरे फ्लैट पर और कोई नहीं था चाभियाँ मेड के पास थी। अगर किसी को भेजकर फ्लैट खुलवा भी लेते तो बर्थ सर्टिफिकेट के साथ अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं इसकी चिंता थी।
कुछ सूझ नहीं रहा था कैसे इतनी जल्दी इंतजाम हो। शाम हो गयी थी सब जयगाँव घूमने निकल रहे थे हमारा तो मन ही उतर गया था और मीठी का रोना शुरु हो गया सुबक-सुबक कर। "हम को भी जाना है भूटान"।
उसके पापा चिढ़ा रहे थे "हमलोग एक काम करते है तुम्हारे लिये इस होटल में सब इंतजाम कर देते हैं तुम रहो हमलोग घूमकर तुमको लेते जायेगे।"
उसका बुक्का फाड़कर रोना और तेज़ हो जाता।
अच्छा चलो छोड़ो ये सब हम लोग दार्जिलिंग और गंगटोक घूम आते हैं। चिढ़कर और रोने लगती वो।
काफी सोच कर "इन्होंने" स्कूल की एक टीचर और अपने एल आइ सी एजेंट को को फोन किया।
स्कूल चूँकि बंद था पर ऑफिस कुछ घंटों के लिए खुलता था उस टीचर ने कहा "सर आप परेशान न हो कल सुबह सबसे पहले स्कूल जाकर सर्टिफिकेट की कॉपी भेज देंगे।
"एल आई सी वाले न भी कहा ऑफिस जाकर देखते है भैया।"
थोड़ी उम्मीद की किरण जागी तो मन हल्का हुआ।
मीठी को काफी मान मनौव्वल के बाद थोड़ा घूमने निकले। शाम की रौनक अच्छी लग रही थी।
हमारे साथ आये लोग शॉपिंग कर रहे थे ,हमने कुछ नहीं खरीदा कौन लगेज़ भारी करे अभी से ही।
वापस जल्दी ही लौट आये,अपने कमरे में आकर
वहीं हल्का फुल्का डिनर किये।
अनमने मन से सब बिस्तर में दुबक गये।
पर सुबह क्या होगा इस इंतजार में करवट बदलते कोई सो ही नहीं पाया।
क्रमश:.......
#श्वेता सिन्हा